नई दिल्ली पुलिस अधिकारियों की जवाबदेही बढ़ाने के लिए सरकार ने एक बड़ा बदलाव किया है। भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) 2023 में धारा 166(ए) को हटाकर नया प्रावधान धारा 199 के रूप में शामिल किया गया है। इसके तहत, यदि कोई थाना प्रभारी (एसएचओ) किसी संज्ञेय अपराध की सूचना मिलने के बावजूद एफआईआर दर्ज नहीं करता है, तो उसके खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की जा सकेगी।
सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
ललिता कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश सरकार (2013) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि पुलिस को किसी भी संज्ञेय अपराध की सूचना मिलने पर बिना किसी देरी के एफआईआर दर्ज करनी होगी। अदालत ने कहा था कि इसमें प्रारंभिक जांच की आवश्यकता नहीं है।
बॉम्बे हाईकोर्ट का सख्त रुख
श्यामसुंदर आर. अग्रवाल बनाम महाराष्ट्र राज्य (2007) मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा था कि एफआईआर दर्ज न करना एक दंडनीय अपराध है। यदि कोई पुलिस अधिकारी ऐसा करने में विफल रहता है, तो उसे दंडात्मक कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा।
नए कानून के तहत बढ़ी जवाबदेही
बीएनएस 2023 की धारा 199 के अनुसार, यदि कोई पुलिस अधिकारी कानूनी प्रक्रिया का उल्लंघन करता है, तो उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई के साथ-साथ आपराधिक मामला भी दर्ज किया जा सकता है। इस बदलाव के बाद, अब पीड़ित नागरिक पुलिस द्वारा एफआईआर दर्ज न करने की शिकायत कर सकते हैं और संबंधित एसएचओ के खिलाफ कानूनी कार्रवाई सुनिश्चित की जा सकती है।
(बीएनएस, 2023 के नए प्रावधानों के तहत, पुलिस की जवाबदेही तय करने की यह पहल नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने में सहायक होगी।)