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बंटवारे के हालात की निशानदेही करता उपन्यास

बंटवारे के आसपास के वक्त क्या हालात थे और उस दौर में पूरी कौम पर क्या मुश्किलें आयीं, शुएब निजाम का उपन्यास उनकी निशानदेही करता है। साथ ही संदेश देता है कि नयी पीढ़ी की अपनी राजनीतिक भागीदारी बढ़ानी होगी।
ये विचार मुख्य अतिथि के तौर पर पूर्व आईएएस डा.अनीस अंसारी ने व्यक्त किए। लेखक शुएब निजाम के उपन्यास गर्द-ए-सफर” और रेखाचित्र संकलन “सर-ए-सय्यारगान-ए-सुख़न” पर विचार गोष्ठी का आयोजन उसलूब आर्गनाइजेशन की ओर से प्रेमचंद सभागार हिन्दी संस्थान हजरतगंज में किया गया था।
डा.हारून रशीद के संचालन में चले कार्यक्रम में दोनों उर्दू किताबों के विषयों को केंद्र में रखते हुए डा.अंसारी ने 2022 में हुए सर्वेक्षण का हवाला से कहा कि पसमांदा मुसलमान आज भी सबसे पीछे हैं। आज राजनीतिक चेतना जगाने की जरूरत है। अध्यक्षीय वक्तव्य में लखनऊ विश्वविद्यालय के पूर्व विभागाध्यक्ष डा.अनीस अशफाक ने लेखक के रचनात्मक कर्म पर रोशनी डालते हुए कहा कि गांव की जिंदगी और तहजीब को दर्शाता 242 पन्नों का यह उपन्यास सूक्ष्म बातों को रखते हुए तेजी से आगे बढ़ता है। साथ ही बदलते समय के साथ आने वाले खौफ और अंदेशों के बीच उम्मीद की किरन को भी सामने रखता है।
कानपुर की डा.गुलरेजा अदीबा ने उपन्यास की उम्दा मंजरकशी की चर्चा करते हुए कहा कि पूरी कहानी वक्त की रफ्तार और उसके साथ बदलती चरित्रों की मानसिकता को उजागर करती है। वरिष्ठ रचनाकार डा.आयशा सिद्दीकी ने कहा कि उपन्यास के महिला चरित्र मजबूत दिखते हैं पर भीतर ही भीतर ये इशारे भी हैं कि महिलाएं लम्बे दौर से झुकी और दबी रही हैं।
शकील सिद्दीकी ने शुएब को अल्फाज का जादूगर बताते हुए कहा कि उपन्यास कथा साहित्य से की गयी उम्मीदों को पूरा करता है। इसमें हर चरित्र को पूरी खूबियों के साथ गढ़ा गया है। इससे पहले रचनाकार शुएब निजाम ने नैयर मसूद और दीगर साहित्यकारों के साथ जी महफिलों का जिक्र करते हुए अपने रचनाकर्म के बारे में बताया।
लेखक के 24 रेखाचित्रों की किताब के बारे में डा.उमैर मंजर कहा कि इन खाकों में अब मिट चुका लखनऊ जिन्दा दिखायी देता है। ये किताब अदबी सरगर्मियों का कैनवस है। लेखिका सबाहत आफरीन की रेखाचित्रों में गजब का भाषायी प्रवाह है। यहां संयोजक शाहिद अख़्तर तथा ज़फर ग़ाज़ी के साथ प्रतुल जोशी, महेंद्र पाठक व दिव्य रंजन जैसे सुधी श्रोता उपस्थित थे। आयोजन में शहर के साहित्य प्रेमियों, शोधार्थियों और अध्यापकों ने उत्साह से भाग लिया। श्रोताओं ने आयोजन को समकालीन उर्दू कथानक तथा परम्परा की समझ को विकसित करने वाला बताया।

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