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Homeप्रदेशउत्तर प्रदेशसंस्कारों पर केन्द्रित दो दिवसीय लोक विमर्श का शुभारंभ

संस्कारों पर केन्द्रित दो दिवसीय लोक विमर्श का शुभारंभ

लखनऊ लोक संस्कृति शोध संस्थान द्वारा संस्कारों पर केन्द्रित दो दिवसीय लोक विमर्श का गुरुवार को शुभारंभ हुआ। उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के निराला सभागार में आयोजित समारोह में वक्ताओं ने लोक संस्कृति संरक्षण विषय पर गहन विमर्श किया।

मुख्य अतिथि चिन्मय मिशन के प्रमुख आचार्य कौशिक चैतन्य ब्रह्मचारी ने कहा कि संस्कार ही व्यक्ति, परिवार और समाज को दिशा देते हैं तथा लोक संस्कृति के संरक्षण के बिना समाज की आत्मा सुरक्षित नहीं रह सकती। उन्होंने तकनीकी प्रगति के साथ सांस्कृतिक मूल्यों को बनाए रखने की आवश्यकता पर बल दिया।

विशिष्ट अतिथि लखनऊ विश्वविद्यालय के विज्ञान संकाय की डीन प्रो. शीला मिश्रा ने कहा कि आधुनिक विज्ञान और परंपरा परस्पर विरोधी नहीं, बल्कि एक-दूसरे की पूरक हैं। संस्कार मानव व्यक्तित्व के वैज्ञानिक एवं नैतिक निर्माण का आधार हैं।

अध्यक्षीय उद्बोधन में कला मर्मज्ञ शाखा वन्द्योपाध्याय ने कहा कि लोक संस्कृति केवल अतीत की स्मृति नहीं बल्कि वर्तमान और भविष्य को दिशा देने वाली जीवंत परंपरा है। इसके संरक्षण के लिए समाज की सक्रिय सहभागिता आवश्यक है।

सांस्कृतिक सत्र में नृत्य-प्रस्तुति के माध्यम से यह संदेश दिया गया कि तकनीक के विकास के साथ समाज भले ही हाईटेक हो रहा हो, किंतु अपने सांस्कृतिक जड़ों को भूलना आत्मविस्मृति के समान है। हमारी जड़ें ही हमारी पहचान, हमारी संस्कृति और हमारे जीवन का आधार हैं। संगीत भवन की निदेशक निवेदिता भट्टाचार्य के निर्देशन में प्रस्तुत इस सांस्कृतिक कार्यक्रम में सौम्या, सुमन, स्मिता, शुभ्रा, सान्वी, वान्या, पूजा, माधुरी सोनी, प्रवीण गौर, शीर्षा, अविका, आद्रिका, अव्युक्ता, अथर्व, नूपुर, कर्णिका, दीपिका, विनीता आदि शामिल रहे।

इस अवसर पर कठपुतली कलाकार नौशाद को जे.पी.लम्बोदर स्मृति लोक संस्कृति सम्मान से विभूषित किया गया। उन्होंने कठपुतली के माध्यम से गुलाबो-सिताबो की लड़ाई भी दिखाई। लोक संस्कृति शोध संस्थान के अध्यक्ष इंजी. जीतेश श्रीवास्तव ने अतिथियों एवं कलाकारों का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि लोक विमर्श का उद्देश्य भारतीय समाज में संस्कार परंपरा के क्षरण पर विमर्श करते हुए उसके पुनरुद्धार की दिशा में वैचारिक एवं सांस्कृतिक संवाद को आगे बढ़ाना है।

वाणी वन्दना देश के प्रख्यात कवि कमलेश मौर्य मृदु ने की। संचालन मुख्य संयोजक अर्चना गुप्ता ने किया। कार्यक्रम के सफल आयोजन में संस्थान की सचिव डॉ. सुधा द्विवेदी, प्रकाशन अधिकारी डॉ. एस.के. गोपाल, कोषाध्यक्ष आशीष गुप्त, ज्योति किरन रतन, नैमिष सोनी, कृष्णा सिंह, राहुल वर्मा, बबलू यादव आदि की सक्रिय भूमिका रही। कार्यक्रम में वरिष्ठ लोक गायिका विमल पन्त, आशा श्रीवास्तव, अलका प्रमोद, डॉ. करुणा पाण्डेय, आईटी कालेज हिन्दी विभाग की अध्यक्ष प्रो. नीतू शर्मा, डीएवी कॉलेज के हिन्दी विभाग के प्रो. अजीत प्रियदर्शी, जयपुरिया मैनेजमेंट कालेज की डा. आभा दीक्षित, दीपा सिंह रघुवंशी, जितेन्द्र मिश्र टीटू, जादूगर सुरेश कुमार, एसपी साहू, सौरभ कमल सहित साहित्यकारों, शिक्षाविदों, कलाकारों, शोधार्थियों एवं लोक संस्कृति प्रेमियों की उल्लेखनीय उपस्थिति रही।

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