सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार कैबिनेट ने जेल मैनुअल में प्रथम संशोधन के प्रस्ताव को मंजूरी प्रदान कर दी है। अब देश की किसी भी जेल में बंदियों से जाति के आधार पर काम नहीं लिया जाएगा। इसके साथ ही जेल अभिलेखों, वारंटों और रिकॉर्ड में कैदियों की जाति का उल्लेख पूरी तरह समाप्त कर दिया जाएगा।
यह संशोधन सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुकन्या शांथा बनाम भारत संघ एवं अन्य मामले में दिए गए निर्देशों के बाद किया गया है। सुनवाई के दौरान कोर्ट के संज्ञान में आया था कि कई राज्यों के जेल मैनुअल में अब भी ऐसी प्रावधान और शब्दावली मौजूद हैं, जो कैदियों के वर्गीकरण, श्रम आवंटन और अनुशासन से जुड़े मामलों में जाति-आधारित भेदभाव और वंशानुगत पूर्वाग्रह को बढ़ावा देते हैं।
कोर्ट ने सभी राज्यों को आदेश दिया था कि वे जाति, समुदाय, धर्म या सामाजिक स्थिति के आधार पर होने वाले किसी भी प्रकार के भेदभावपूर्ण संदर्भों को तुरंत हटाएं और यह सुनिश्चित करें कि जेल प्रशासन संविधान में निहित समानता, गरिमा और भेदभाव-रहितता के सिद्धांतों के अनुरूप कार्य करे।
कैबिनेट द्वारा मंजूर संशोधन में अब कार्य आवंटन, कैदी वर्गीकरण और सजा में छूट जैसी नीतियाँ केवल वस्तुनिष्ठ, विधिसम्मत और सुधारात्मक मानकों पर आधारित होंगी। यह कदम जेल प्रशासन को अधिक पारदर्शी, संवेदनशील और समानता-आधारित दिशा में ले जाने की अहम पहल माना जा रहा है।










